'मेरे देश में मुझे सम्मान नहीं मिला', शर्म की बात है कि... मैनचेस्टर स्टेडियम में अपने नाम का स्टैंड देख इमोशनल हुआ भारतीय सूरमा

भारत और इंग्लैंड के बीच मैनचेस्टर में टेस्ट से ठीक पहले ओल्ड ट्रेफर्ड स्टेडियम के एक स्टैंड का नाम फारुख इंजीनियर और क्लाइव लॉयड पर रखा गया. दोनों लैंकाशर के लिए लंबे समय तक खेले.

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फारुख इंजीनियर ने लैंकाशर के लिए 175 मुकाबले खेले.

फारुख इंजीनियर ने भारत के लिए 46 टेस्ट में शिरकत की.

भारत के पूर्व विकेटकीपर फारुख इंजीनियर के नाम पर मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रेफर्ड स्टेडियम के एक स्टैंड का नामकरण हुआ. 23 जुलाई को भारत और इंग्लैंड के बीच चौथे टेस्ट के पहले दिन उन्हें यह सम्मान दिया गया. फारुख इंजीनियर संभव है कि पहले भारतीय क्रिकेटर हैं जिनके नाम पर किसी विदेशी मैदान में कोई स्टैंड हुआ है. इसके बाद वह इमोशनल हो गए. उन्होंने कहा कि इस तरह का सम्मान उन्हें अपने देश में नहीं मिला. फारुख के साथ ही वेस्ट इंडीज के पूर्व कप्तान क्लाइव लॉयड के नाम पर भी एक स्टैंड किया गया. ये दोनों ही लैंकाशर क्रिकेट क्लब के लिए कई सालों तक खेले थे. ओल्ड ट्रेफर्ड लैंकाशर का होम ग्राउंड है.

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ओल्ड ट्रेफर्ड स्टेडियम का बी स्टैंड जो खिलाड़ियों व मीडिया सेंटर और हिल्टन होटल के बीच में है उसका नाम क्लाइव लॉयड व इंजीनियर स्टैंड रखा गया. भारत और इंग्लैंड के बीच चौथे टेस्ट के टॉस से पहले यह कवायद हुई. इंजीनियर ने इसके बाद समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा, यह न केवल मेरे बल्कि भारत के लिए भी गर्व की बात है. क्लाइव और मैं इस बारे में सुबह बात कर रहे थे. हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे सम्मान मं ऐसा कुछ होगा. ईश्वर दयालु है. मेरे देश में मुझे जो पहचान नहीं मिली यह उसकी भरपाई है.

इंजीनियर को 2024 में मिला था लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड

 

87 साल के इंजीनियर के करियर का ज्यादातर समय बॉम्बे (मुंबई) के लिए खेलते हुए बीता. ब्रेबॉर्न स्टेडियम में वह काफी खेले. उन्होंने कहा, यह शर्म की बात है कि मेरी उपलब्धियों को वहीं पर पहचान नहीं मिली जहां पर मैं सबसे ज्यादा क्रिकेट खेला. हालांकि उन्होंने 2024 में लाइफटाइम अचीवमेंट सम्मान देने के लिए बीसीसीआई का आभार जताया.

इंजीनियर ने लैंकाशर के लिए बनाए 5942 रन, किए 464 शिकार

 

इंजीनियर ने 1968 से 1976 के बीच लैंकाशर के लिए 175 मुकाबले खेले. इनमें 5942 रन बनाए, 429 कैच लिए और 35 स्टंपिंग की. उनके खेल ने 1970 के दशक में लैंकाशर को वनडे फॉर्मेट में दबदबा कायम करने में मदद की. 1968 में ही लॉयड भी लैंकाशर का हिस्सा बने थे. इन दोनों के साथ आने से पहले तक इस क्लब ने 1950 के बाद से कोई बड़ी ट्रॉफी नहीं जीती थी. मगर लॉयड-इंजीनियर के आने के बाद लैंकाशर ने 1970, 1971, 1972 और 1975 में कुल चार बार जिलेट कप जीता. वहीं 1969 और 1970 में जॉन प्लयेर लीग पर कब्जा किया. लॉयड और इंजीनियर दोनों ओल्ड ट्रेफर्ड में उपाध्यक्ष हैं. 2020 में दोनों को क्लब के हॉल ऑफ फेम में जगह दी गई थी.

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