'मेसी... तुम दुनिया खत्‍म होने तक खेलते रहो, हम तुम्‍हें दुनिया खत्‍म होने तक देखते रहें'

मिस्‍त्र के पिरामिडों में दफन इतिहास से कहीं गहरा था वो शोर.

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मिस्‍त्र के पिरामिडों में दफन इतिहास से कहीं गहरा था वो शोर. चीन की बुलंद दीवार से बेहद ज्‍यादा लंबा. और माउंट एवरेस्‍ट की चोटी से बहुत ऊंचा भी. जमीन के जर्रे-जर्रे में फैल चुके इस शोर में आसमानी आशीर्वाद का रंग मिला था. ये शोर 'म' से मेसी का था, और ये आशीर्वाद 'म' से माराडोना का. 25 नवंबर 2020 को माराडोना ने जब इस दुनिया को अलविदा कहा, तब उनके साथ एक सपना भी दफन हुआ. सपना अर्जेंटीना को एक बार फिर फुटबॉल वर्ल्‍ड चैंपियन बनते देखने का. लेकिन मेसी ने माराडोना की इस चाहत को नहीं मरने दिया, बल्कि उन्‍होंने इस सपने को अपना सपना बना लिया. और आखिरकार मेसी ने कर दिखाया. कतर की जमीन पर फुटबॉल वर्ल्‍ड कप के ऐतिहासिक फाइनल में फ्रांस को 3-3 की बराबरी के बाद पेनल्टी शूटआउट में 4-2 से हराकर उन्‍होंने वो कारनामा अंजाम दिया जो साल 1986 में माराडोना ने मुकम्‍मल किया था. मेसी ने अपने देश को 1978, 1986 के बाद तीसरा फीफा वर्ल्‍ड कप दिलाया.

 

अर्जेंटीना के मसीहा मेसी
लेकिन मेसी ने अर्जेंटीना को सिर्फ वर्ल्‍ड कप नहीं दिया, बल्कि आर्थिक संकट से जूझ रहे करीब पौने पांच करोड़ की आबादी वाले इस देश के चेहरे पर एक बड़ी और गर्वभरी मुस्‍कुराहट भी दी. वो देश जिसके दस में से हर चार व्‍यक्ति गरीब हैं लेकिन फिर भी अपने मसीहा मेसी को खेलता देखकर कुछ देर के लिए वो अपनी गुरबत को भूल जाते हैं. वो अर्जेंटीना जो करीब 83 प्रतिशत महंगाई दर होने के बावजूद आज जमीन पर अपने भगवान बन चुके मेसी का हाथ पकड़कर हर मुश्किल से पार पाने की हिम्‍मत दिखा रहा है. सच तो ये है कि माराडोना के बाद अर्जेंटीना ने किसी को अपना देवता बनाया है तो वो मेसी हैं. अर्जेंटीना समेत दुनिया के करोड़ों लोगों की आंखें खुशी के आंसुओं से नम है तो उसकी वजह भी वही हैं. फुटबॉल के दीवाने देश में ये खुशी उस लम्‍हे से बिल्‍कुल भी कमतर नहीं है जब 9 जुलाई 1816 को अर्जेंटीना को स्‍पेन से आजादी मिली थी.  


आजादी के बाद यूं तो साल 1978 में भी अर्जेंटीना ने खिताब जीता, लेकिन 1986 में फुटबॉल के मैदान में माराडोना ने जो करिश्‍मा किया, उसने न केवल पूरे अर्जेंटीना को बल्कि ऑफिस की किसी टेबल पर रखे गोल ग्‍लोब में सिमटी पूरी दुनिया के फुटबॉल फैंस को अचंभित कर दिया. ये वो वक्‍त था जब इस देश में फुटबॉल को लेकर दीवानगी उफान पर थी और मानो फिजां में इसी का रंग घुला हुआ था. इस ऐतिहासिक सफलता के एक साल बाद 24 जून 1987 को रोजारियो के छोटे से घर में एक नन्‍ही जान ने अपनी पहली अंगड़ाई ली. परिवार के जिन लोगों ने ये लम्‍हा देखा, उन्‍होंने ये भी देखा होगा कि शायद ये अंगड़ाई न होकर किसी पेनल्‍टी को गोलपोस्‍ट में उतारने की कवायद हो. इस दौर में जन्‍म लेना भी मेसी की रगों में फुटबॉल दौड़ने की वजह रही होगी. लेकिन कहते हैं कि आपकी ईमानदारी तभी साबित होती है जब आपको बेईमानी करने के उचित अवसर मिले हों, ठीक वैसे ही सफलता का स्‍वाद भी तभी लज्‍जतदार लगता है जब आप संघर्षों की आंच से तपकर निकले हों. मेसी भी धीरे-धीरे तपकर ही खरा सोना बन पाए.

 

बीमारी को दी मात 
बचपन की मासूमियत और माराडोना की महानता को ओढ़ने का सपना लिए मेसी भी बड़े हो रहे थे. 9 साल तक को आलम ये था कि किसी मैच में फुटबॉल उनके पास आती तो 15-15 मिनट तक पैरों से जुदा नहीं होती थी. देखने वाले अपनी जेब से सिक्‍के निकालकर खुशी में बरसा देते थे. लेकिन जिंदगी एक चाल से चले तो जीने का मजा क्‍या? यहां भी चाल बदली और सिर्फ 11 साल की उम्र में सामने एक ऐसी बीमारी की चुनौती आ खड़ी हुई जिससे शरीर का विकास रुक सकता था. ग्रोथ हार्मोन की ऐसी कमी जिसका इलाज भी खौफ से कम नहीं था. इससे पार पाने की जद्दोजहद के तहत रोज रात को मेसी अपने पैरों में हार्मोन का इंजेक्‍शन लगाते. मेसी ने खुद भी कहा कि उन्‍होंने भले ही इलाज किया लेकिन बावजूद इसके बाकी साथियों से मेरा कद छोटा ही रहा. लेकिन इलाज के दर्द से ज्‍यादा बड़ी चिंता इलाज के पैसों की थी.

 

पहले मैच में मिली थी हार 
22 नवंबर 2022 को मौजूदा वर्ल्‍ड कप में जब सऊदी अरब के हाथों अपने पहले ही ग्रुप मैच में अर्जेंटीना को हार मिली तो मेसी पर अंगुलियां उठने में जरा देर नहीं लगी. कहा गया कि अब उनमें पहले जैसी बात नहीं रही. उम्र के साथ वो धीमे हो गए हैं. और भी न जाने क्‍या-क्‍या. लेकिन मुश्किल हालात आपको हमेशा दो रास्‍ते दिखाते हैं. एक जो आपको कमजोर बनाता है दूसरा आपके हौसलों और इरादों को और मजबूत करता है. मेसी ने दूसरा रास्‍ता चुना. उसके बाद मैक्सिको पर 2-0, पोलैंड पर 2-0, ऑस्‍ट्रेलिया पर 2-1, क्‍वार्टरफाइनल में नीदरलैंड्स पर पेनल्‍टी में 4-3 और सेमीफाइनल में क्रोएशिया पर 3-0 की जीत में मेसी का वो अवतार नजर आया जिसकी मुरीद पूरी दुनिया है. लेकिन मेसी हैं तो एक इंसान ही फिर उनमें आखिर ऐसा क्‍या है? तो क्‍या हुआ अगर फुटबॉल उनके पैरों के इशारों पर ठीक ऐसे नाचती है जैसे कृष्‍ण की मुरली की तान पर गोपियां. तो क्‍या हुआ अगर फुटबॉल फील्‍ड पर मेसी दौड़ते नहीं बल्कि हवा की तरह बहते नजर आते हैं. तो क्‍या हुआ अगर उनके चेहरे की मासूम मुस्‍कुराहट कठोर से कठोर दिल के भी भीतर तक चली आती है. तो क्‍या हुआ अगर मेसी के हंसने से दुनिया हंसती और उनके रोने से दुनिया रोती दिखाई देती है. निश्‍चल मुस्‍कान, चेहरे पर अपनेपन का भाव, जैसे अपने ही घर का बेटा या भाई, हैरतअंगेज खेल, साफ-सुथरी सार्वजनिक छवि, करोड़ों-अरबों लोगों के चेहरों पर मुस्‍कुराहट बिखेरने का अद्भुत असाधारण तोहफा. माराडोना से बिल्‍कुल उलट, अलग. ये है असली मेसी. मेसी उतने ही महान हैं, उतने ही प्‍यारे, अर्जेंटीना के वैसे ही देवदूत. माराडोना महान हैं क्‍योंकि वो माराडोना थे. लेकिन मेसी की महानता माराडोना जैसा होने में नहीं है. मेसी माराडोना नहीं हैं. उन्‍हें माराडोना मत बनाओ. मेसी इसलिए महान हैं क्‍योंकि वो मेसी हैं.  
 
मेसी को खेलते देखना ऑर्गेज्‍म मिलने जैसा 
अर्जेंटीना के लिए मेसी भले ही भगवान हों, लेकिन वास्‍तव में मेसी की हर किसी के लिए अलग-अलग परिभाषा हैं. 'मेरे लिए मेसी को खेलते देखना सच्‍ची खुशी है. यह अनुभव ऑर्गेज्‍म मिलने जैसा है.' पुर्तगाल के महान फुटबॉलर लुईस फिगो ने मेसी को कुछ इस तरह बयां किया है तो मशहूर मैनेजर पेप गार्डियोला ने कहा है, 'उनके बारे में कुछ मत लिखो, उन्‍हें बयां करने की कोशिश भी मत करो. बस उन्‍हें खेलता हुआ देखो.' और मेरे लिए मेसी एक जादू की तरह है जो जब फुटबॉल लेकर मैदान पर दौड़ता है तो मानो वक्‍त ठहर जाता है, हवा जैसे थम जाती है, निगाहें उसके दिलकश अंदाज और थिरकते पैरों पर रुक जाती है. तब आपके आसपास क्‍या चल रहा होता है, न तो आप जान पाते हैं और न ही जानना चाहते हैं. तब मन से बस एक ही आवाज और अहसास बाहर आने को मचलते हैं... 'मेसी, तुम दुनिया खत्‍म होने तक खेलते रहो, हम तुम्‍हें दुनिया खत्‍म होने तक देखते रहें.

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