मीनाक्षी हुड्डा ने भारत को विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 14 सितंबर को दूसरा गोल्ड दिलाया. उन्होंने 48 किलो भारवर्ग में कजाखस्तान की नाजिम किजाबाय को 4-1 के अंतर से मात दी. मीनाक्षी ने पहली बार वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीता है. उन्होंने इंग्लैंड के लिवरपूल में खेले जा रहे इवेंट के फाइनल में पेरिस ओलिंपिक की कांस्य पदक विजेता को धूल चटाई. मीनाक्षी से पहले जैस्मिन लंबोरिया ने सोना जीता था. उन्होंने 57 किलो भार वर्ग में पोलैंड की जूलिया सेरेमेटा को हराया. जैस्मिन के अलावा नूपुर श्योराण के पास भी गोल्ड का मौका था लेकिन वह 80 प्लस किलो भारवर्ग के फाइनल में हार गई. 80 किलो भार वर्ग में पूजा रानी को भी शिकस्त मिली.
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इस कामयाबी के साथ जैस्मिन और मीनाक्षी ने एक खास लिस्ट में जगह बनाई. उनसे पहले मैरी कॉम (2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018), निकहत जरीन (2022 व 2023), सरिता देवी (2006), जेनी आरएल (2006), लेखा केसी (2006), नीतू घनघस (2023), लवलीना बोरगोहैन (2023) और सवीटी बूरा (2023) ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीता.
मीनाक्षी के पिता श्रीकृष्ण रोहतक में ऑटो रिक्शा चलाते हैं. वे सुबह साढ़े आठ बजे घर से निकलते हैं शाम को छह बजे तक इसी काम में जुटे रहते हैं. वे जो काम करते हैं उससे मीनाक्षी के लिए बॉक्सर बनना आसान नहीं था लेकिन उन्होंने अपनी सबसे छोटी संतान के लिए पूरा जोर लगा दिया. श्रीकृष्ण ने बताया कि वह अपनी कमाई से बड़ी मुश्किल से घर चला रहे थे. उनके पास न तो जमीन थी और न ही कोई नौकरी. वह तब ऑटो रिक्शा भी किराए पर चलाते थे.
ऐसे में कोच विजय हुड्डा मददगार बनकर आए. उन्होंने मीनाक्षी के पिता से कहा कि वह ट्रेनिंग की फीस नहीं लेंगे. साथ ही खानपान और किट का बंदोबस्त भी उन्होंने ही किया. इस तरह मीनाक्षी का करियर शुरू हुआ.
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