नई दिल्ली. दुनियाभर में इन दिनों ढेरों खेल खेले जाते हैं. जिनके अलग-अलग नियम भी होते हैं. यही नियम उस खेल के रोमांच और उसकी गरिमा को भी बनाए रखते हैं. जिन्हें अगर कोई खिलाड़ी ब्रेक करता है तो उसे तमाम तरह की पेनल्टी या फिर वॉर्निंग से होकर गुजरना पड़ता है. इतना ही नहीं कभी-कभी तो खिलाड़ी पर बैन भी लगा दिया जाता है. यही कारण है कि क्रिकेट से लेकर फुटबॉल, बास्केटबॉल और बैडमिंटन तक सभी में खिलाड़ियों को अलग-अलग तरह की पेनल्टी का सामना करना पड़ता है. चलिए डालते हैं विस्तार से एक नजर :-
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क्रिकेट
क्रिकेट की शुरुआत साल 1721 से अंग्रेजों की सरजमीं पर हो चुकी थी. जिसके बाद ये खेल दुनिया में ब्रिटिश राज के साथ आगे बढ़ता गया. जितने भी देशों पर अंग्रेजों ने राज किया या जहां भी उनका बोलबाला रहा. क्रिकेट का खेल उन देशों की शान बन गया. इसमें भारत, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे प्रमुख देश भी शामिल हैं. इन सभी ने गुलामी में रहकर क्रिकेट सीखा और आजाद होने के बाद इस खेल से दुनिया पर अपना दबदबा साबित किया. ऐसे में आधुनिकता की तरफ बढ़ते क्रिकेट में तमाम तरह की पेनल्टी और द जेंटलमैन गेम कहे जाने क्रिकेट खेल की गरिमा को बनाए रखने के लिए क्रिकेट के नियम में समय-समय पर तमाम बदलाव होते चले गए.
स्लो ओवर रेट पेनल्टी
टेस्ट के बाद वनडे और इन दिनों टी20 क्रिकेट फैंस के दिलों में राज कर रहा है. फटाफट क्रिकेट के नाम से मशहूर इस खेल में कहीं धीमापन न आए. इसके लिए क्रिकेट की कर्ताधर्ता आईसीसी ने स्लोओवर रेट पेनल्टी लगाना शुरू किया. इसके अंतर्गत अगर फील्डिंग करने वाली टीम तय समय सीमा के अंदर 20 ओवरों की समाप्ति नहीं करती है तो जो भी ओवर अतिरिक्त समय पर फेंके जाएंगे. उसमें 30 गज के दायरे से बाहर 5 की बजाए फील्डिंग टीम को एक खिलाड़ी की पेनल्टी मिलेगी और चार खिलाड़ी बाहर जबकि 5 खिलाड़ी अंदर करने पड़ेंगे. इससे मैच अंतिम समय पर रोमांचक बन जाता है.
5 रन की पेनल्टी
टी20 क्रिकेट में अब पांच रनों की पेनल्टी भी लगा दी गई है. जिसके चलते अगर कोई खिलाड़ी गेंदबाज के रनअप लेते समय विरोधी टीम के बल्लेबाज या फिर किसी तरह की हरकत करते पाया जाता है तो बल्लेबाजी करने वाली टीम को पांच रन उपहार स्वरूप मिलते हैं जो गेंदबाजी करने वाली टीम पर पेनल्टी होती है.
नो-बॉल का गेम
क्रिकेट के खेल में तीन तरह नो बॉल दी जाती है. पहला यह कि गेंद फेंकते समय गेंदबाज के अगले पैर का कुछ हिस्सा क्रीज के अंदर होना चाहिए. अगर ये पूरी तरह से बाहर होता है तो नो बॉल दी जाती है. इसके अलावा अगर गेंदबाज बल्लेबाज के कमर की उंचाई से सीधा गेंद नॉन स्ट्राइक एंड से विकेटकीपर की तरफ फेंकता है तो इसे बीमर कहा जाता है और इसे भी नो-बॉल के साथ एक अतिरिक्त रन के अलावा एक अतिरिक्त गेंद के साथ फ्री हिट भी बल्लेबाजी टीम को मिलती है. तीसरी ये है कि एक गेंदबाज को 6 गेंद के ओवर में एक ही बाउंसर की अनुमति है. दूसरी फेंकने पर उसे भी नो बॉल दिया जाता है.
वाइड बॉल का खेल
वाइड की बात करे तो इसे भी क्रिकेट में अमान्य गेंद करार दिया जाता है. नए नियम के मुताबिक़ टी20 क्रिकेट में अगर बल्लेबाज ऑफ स्टंप की तरफ जा रहा है और गेंदबाज पिच में निर्धारित सीमा के बाहर गेंद डालता है तो उसे वाइड नहीं दिया जाता है. मगर बैट्समेन अगर क्रीज पर ज्यादा मूव नहीं करता है वाइड लाइन के बाहर जाने वाली गेंद को वाइड करार दिया जाता है.
मैदान में झगड़ा तो लगेगा जुर्माना
क्रिकेट के मैदान में अक्सर देखा जाता है कि खिलाड़ी एक दूसरे को स्लेजिंग (छींटाकाशी) करते नजर आते रहते हैं. इतना ही नहीं कभी-कभी खिलाड़ी एक-दूसरे को धक्का-मुक्की या फिर गेंद और बल्ले से प्रहार करने का संकेत भी दे देते हैं. इसके लिए आईसीसी ने अपने संविधान में ऐसी हरकतों को रोकने के लिए जुर्माने का प्रावधान रखा है. जिसके अंतर्गत मामले को गंभीरता को समझते हुए उसे डिमेरिट अंक दिए जाते हैं. बल्कि मैच फीस के 25 प्रतिशत जुर्माने से लेकर अगले मैच से बैन तक लगा दिया है. ये सभी आईसीसी के कोड ऑफ़ कंडक्ट के तहत आते हैं और इसमें लेवल 1 से लेकर लेवल 4 तक में अलग-अलग तरीके की पेनल्टी शामिल है.
लेवल एक
इसे अंतर्गत अगर कोई खिलाड़ी अंपायर से बहस करता है या फिर किसी क्रिकेट के सामना या मैदान में गाली देता पाया जाता है. इसके अलावा हर गेंद पर जरूरत से ज्यादा अपील करता है या फिर लोगो पॉलिसी का उल्लंघन करता है तो ये सभी लेवल 1 के अंदर आते हैं.
सजा - लेवल एक का उल्लंघन करने पर 50 प्रतिशत तक मैच फीस का जुर्माना खिलाड़ी पर लगाया जाता है.
लेवल दो
लेवल दो के अंतर्गत अगर कोई खिलाड़ी लेवल एक की गलती को 12 महीने के भीतर फिर से करता है. गेंद से छेड़छाड़ करता है या फिर अंपायर और रेफरी के बीच आ जाता है. इसके अलावा किसी खिलाड़ी या मैच ऑफिशियल को धमकी देता है. जबकि रेसिस्ट कमेंट भी करता है तो उसके लेवल दो का दोषी माना जाता है.
सजा - इसका उल्लंघन करने पर खिलाड़ी को 50 से 100 प्रतिशत तक मैच फ़ीस जबकि एक टेस्ट मैच या फिर दो वनडे मैच का बैन भी झेलना पड़ सकता है.
लेवल तीन
इसमें भी लेवल दो को सभी चीजें शामिल है. जबकि अगर कोई खिलाड़ी लेवल दो की हरकतों को एक साल के अंदर फिर से रिपीट करता है तो उसे लेवल तीन का दोषी पाया जाएगा.
सजा - लेवल तीन का दोषी पाए जाने पर 6 टेस्ट मैच या फिर 12 वनडे मैचों का भारी बैन लग सकता है.
लेवल चार
इसमें भी लेवल तीन की गलती को अगर अगले एक साल में दोहराता है तो किसी खिलाड़ी को शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाता है तो उसे लेवल चार का दोषी पाया जाता है.
सजा - इसके अंतर्गत खिलाड़ी को टेस्ट क्रिकेट से आजीवन बैन जबकि 20 वनडे मैचों का बैन झेलना पड़ सकता है.
फुटबॉल
पूरी दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलों में शुमार फुटबॉल का रोमांच सबके सिर चढ़कर बोलता है. इसमें जीत की चाहत लिए खिलाड़ी जब मैदान में उतरते हैं तो वो किसी भी हद तक चले जाते हैं. जिसके चलते वह आपस में भिड़ भी जाते हैं. इसी हरकत या फिर कहे गलतियों को रोकने के लिए फुटबॉल के खेल में रेड और येलो कार्ड का इस्तेमाल किया जाता है. जिसको ध्यान में रखते हुए खिलाड़ी मैदान में खेल की गरिमा और उसका रोमांच बनाए रखते हैं.
कबसे हुआ कार्ड का चलन
फुटबॉल के मैदान में पहली बार साल 1970 फीफा वर्ल्ड कप के बाद रेड और येलो कार्ड चलन में आए. जिसके बाद से अभी तक इनका पूरी दुनिया में खेले जाने फुटबॉल मैचों में इस्तेमाल होता आ रहा है.
कब दिया जाता है येलो कार्ड
यदि कोई खिलाड़ी फुटबॉल के मैदान में खेल के दौरान किसी तरह से विरोधी खिलाड़ी को तंग करता है या उससे भिड़ जाता या फिर फाउल करता है तो सबसे पहले पहले चेतावनी के साथ येलो कार्ड दिया जाता है.
रेड कार्ड
फुटबॉल के मैदान में अगर एक बार येलो कार्ड मिल जाता है. उसके बाद भी अगर खिलाड़ी फाउल करता है तो फिर उसे दूसरे येलो कार्ड के साथ रेड कार्ड दिखाकर मैदान से बाहर कर दिया जाता है. इसका मतलब होता है कि अब वो खिलाड़ी मैदान से बाहर जाएगा और मैच नहीं खेल सकेगा. जिसके चलते उसकी टीम 11 की बजाए 10 खिलाड़ियों के साथ मैदान में खेलेगी.
पेनल्टी और फ्री किक का क्या है नियम ?
जब भी फुटबॉल खिलाड़ी मैदान में फ़ाउल करता है तो जरूरी नहीं है कि उसे हर बार कार्ड दिखाया जाए. बल्कि हर एक फाउल पर विरोधी टीम को फ्री किक दी जाती है. अगर ये फाउल पेनल्टी बॉक्स के अंदर होता है तो फिर विरोधी टीम को पेनल्टी मार्क से गोल करने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है. इसमें सिर्फ गोलकीपर ही उस शॉट को रोकने के लिए खड़ा होता है. हालांकि अगर मैच के दौरान ऑफ साइड हुआ है तब फ्री किक नहीं दी जाती है.
फील्ड हॉकी
हॉकी खेल का भी जन्मदाता इंग्लैंड को माना जाता है और साल 1871 में इंग्लैंड में पहले हॉकी क्लब की स्थापना हुई थी. तबसे लेकर अभी तक हॉकी के खेल में कई बदलाव हुए. जिसमें सबसे बड़ा बदलाव इसके समय को 70 मिनट से घटाकर अब 60 मिनट का कर दिया गया है. जिसमें 15-15 मिनट के चार भाग होते हैं. हॉकी में भी फुटबॉल की तरह येलो और रेड कार्ड का इस्तेमाल तय समय में खेल को समाप्त करने और उसकी स्पीड को बनाए रखने के साथ खेल की गरिमा को भी बनाए रखने के लिए किया जाता है.
ग्रीन कार्ड
छोटे मोटे फ़ाउल जैसे किसी खिलाड़ी को धक्का दे देना या गेंद की राह में बाधा पहुंचाने के लिए अंपायर ग्रीन कार्ड देता है, जो एक तरह की चेतावनी होती है.
येलो कार्ड
फुटबॉल की तरह हॉकी में अगर किसी खिलाड़ी को खेल के दौरान फाउल या फिर गलत हरकत करते पाया जाता है तो उसे चेतावनी के तौरपर येलो कार्ड दिया जाता है. इस कार्ड के मिलते ही वह खिलाड़ी मैदान से 5 मिनट के लिए बाहर कर दिया जाता है. इस खेल में एक खिलाड़ी को दो अलग-अलग अमान्य गतिविधियों के लिए दो बार येलो कार्ड भी दिया जा सकता है. इससे उसके मैदान से बाहर होने का समय भी बढ़ जाता है. वहीं अगर येलो कार्ड मिलने पर खिलाड़ी दोबारा उसी गलती को दोहराता है तो फिर विरोधी टीम को पेनल्टी भी दी जाती है.
रेड कार्ड
फुटबाल की तरह हॉकी में रेड कार्ड दिए जाने के बाद वह खिलाड़ी मैदान से बाहर हो जाता है और उसकी जगह कोई दूसरा खिलाड़ी मैदान में नहीं आता है. इसका मतलब साफ़ है कि रेड कार्ड मिलने पर टीम 10 खिलाड़ियों के साथ मैच में आगे खेलती है. हालांकि रेड कार्ड हॉकी टीम के कप्तान को नहीं दिया जाता है.
बैडमिंटन
फुटबॉल और हॉकी के बाद बैडमिंटन के खेल में भी येलो, रेड और ब्लैक (काला) कार्ड दिए जाते हैं. बैडमिंटन के खेल में नियम तोड़ने पर सिंगल्स या डबल्स मैच में खिलाड़ी को पहले येलो कार्ड दिया जाता है. इसके बाद भी गलती दोहराने पर खिलाड़ी को ब्लैक कार्ड दे दिया जाता है. एक मैच के दौरान किसी खिलाड़ी को सिर्फ एक बार ही येलो कार्ड दिया जाता है. जबकि उसके बाद रेड या फिर ब्लैक कार्ड दिया जाता है.
कब दिया जाता है येलो कार्ड
बैडमिंटन में बात करें तो येलो कार्ड किसी खिलाड़ी को तभी दिया जाता है. जब वह मैच के दौरान बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन के किसी नियम को तोड़ता है या फिर अंपायर से बहस कर बैठता है. जिसके चलते चेतावनी के तौरपर येलो कार्ड दिया जाता है.
इन हरकतों के चलते दिया जाता है येलो कार्ड :-
1. अपने बैडमिंटन रैकेट को फेंकना
2. विरोधी का ध्यान भंग करना
3. बिना अनुमति के कोर्ट छोड़ना
4. अनावश्यक देरी
5. जब कोई खिलाड़ी जानबूझकर शटल से छेड़छाड़ करता है
6. कोर्ट से बाहर जब कोच कोचिंग करने लगता है
7. जब कोई खिलाड़ी आपत्तिजनक या अनुचित तरीके से व्यवहार करता है
8. मोबाइल फोन का इस्तेमाल
रेड कार्ड
जब एक खिलाड़ी मैच के दौरान एक से अधिक बार गलती करता है और नियम तोड़ता है तो अंपायर अपना सीधा हाथ उठाकर बैडमिंटन खिलाड़ी को रेड कार्ड दिखाता है. जब भी किसी खिलाड़ी को रेड कार्ड मिलता है तो सामने वाले विरोधी खिलाड़ी को पॉइंट मिलता है.
ब्लैक कार्ड
जब एक मैच के दौरान खिलाड़ी अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है और लगातार गलतियां करता रहता है. तब अंपायर मैच के दौरान रेफरी से खिलाड़ी को डिसक्वालीफाई करने की मांग करता है. उसके बाद रेफरी मामले की जांच करता है और वह सहमत होता है तो रेफरी अंपायर को ब्लैक कार्ड दिखाने को कहता है. इसके बाद अंपायर खिलाड़ी का नाम पुकारता है और अपने सीधे हाथ से ब्लैक कार्ड दिखाता है. इसका मतलब होता है कि वह खिलाड़ी पूरे टूर्नामेंट या चैंपियनशिप से बाहर हो जाता है.
बास्केटबॉल
बास्केटबॉल के मैच के दौरान परिस्थितियों के हिसाब से उनकी पेनल्टी भी अलग-अलग तरह की होती है. नॉन-शूटिंग फाउल के चलते टीम मैच के दौरान अपनी पोजीशन खो देती है. जबकि शूटिंग फाउल के चलते फ्री थ्रो दिए जाते हैं. अगर गेंद बास्केट हो जाती है और खिलाड़ी को फाउल दिया जाता है तब खिलाड़ी को एक और फ्री थ्रो उसकी लाइन के पास से मिलता है . इसके विपरीत अगर गेंद बास्केट नहीं होती है तो फिर दो बार फ्री थ्रो मिलते है.
बास्केटबॉल में दिए जाने वाले फ़ाउल:-
फ़ाउलिंग आउट
टीम फ़ाउल
तकनीकी फाउल
फ्लैगरेंट फाउल
क्रिकेट के साथ अन्य खेलों के फाउल और कार्ड :-
क्रिकेट - कोई कार्ड नहीं बल्कि भुगतान और बैन
फुटबॉल - येलो कार्ड और रेड कार्ड
हॉकी - ग्रीन कार्ड, येलो कार्ड और रेड कार्ड
बैडमिंटन - येलो कार्ड, रेड कार्ड और ब्लैक कार्ड
बास्केटबॉल - कोई कार्ड नहीं
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