Paris Olympic : क्रिस गेल बनने का छोड़ा सपना, पिज्जा शॉप में किया काम, जानिए कौन है अब ओलिंपिक मेडल जीतने वाला ये जांबाज ?

Paris Olympic : खेलों के महाकुंभ कहे जाने वाले ओलिंपिक गेम्स में क्रिकेट छोड़कर जमैका के रजिंदर ने कांस्य पदक जीतकर रचा इतहास और पहली बार हुआ ऐसा.

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Shubham Pandey

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Paris Olympic मेडल जीत के बाद रजिंदर कैंपबेल

Paris Olympic मेडल जीत के बाद रजिंदर कैंपबेल

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Paris Olympic : पेरिस ओलिंपिक में रजिंदर ने रचा इतिहास

Paris Olympic : जमैका को इस स्पर्धा में दिलाया पहला मेडल

Paris Olympic : खेलों के महाकुंभ कहे जाने वाले ओलिंपिक गेम्स में एक से बढ़कर एक एथलीट अपनी प्रतिभा और मेडल जीतकर हीरो बनने की कहानी से आने वाली पीढ़ी के तमाम युवा खिलाड़ियों को प्रेरित करते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है, जमैका के शॉट पुट एथलीट रजिंदर कैम्पबेल की, जिन्हें कभी क्रिस गेल की तरह पावर हिटर बल्लेबाज बनना था. लेकिन किस्मत ने ऐसा मोड़ लिया कि अमेरिका की पिज्जा शॉप में काम करके उन्होंने अब अपने देश जमैका (जिसे तेज गति के रनर्स के लिए जाना जाता है) के लिए शॉट पुट में ओलिंपिक का पहला मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. मेडल जीतकर हीरो बनने के बाद रजिंदर ने बताया कि कैसे वह क्रिकेट को छोड़कर इस कारनामे को अंजाम दे सके.


रजिंदर बनना चाहते थे क्रिकेटर

 

रजिंदर ने पेरिस ओलिंपिक में शनिवार रात को शॉट पुट स्पर्धा में कांस्य पदक अपने नाम किया और अमेरिकी एथलीट से पीछे रह गए. जिससे वह अपने देश जमैका से आकर शॉट पुट में मेडल जीतने वाले पहले खिलाड़ी भी बने.रजिंदर ने सबसे पहले अपने भारतीय नाम के पीछे का कारण बताते हुए स्पोर्ट स्टार से बातचीत में कहा,

 

मेरे पिता जी वेस्टइंडीज के पूर्व क्रिकेटर और लेग स्पिनर रजिंदर धनराज के बहुत बड़े फैन थे. इसलिए उन्होंने मेरा नाम भी रजिंदर रखा.मैं भी शुरुआत में स्कूल लेवल और कॉलेज लेवल पर क्रिकेट खेलता था और क्रिस गेल जैसा बल्लेबाज बनना चाहता था.


ट्रैक एंड फील्ड में कैसे गए रजिंदर ?

 

क्रिकेट से दूरी बनाने की वजह को लेकर रजिंदर ने आगे कहा,

 

जब मैंने किंग्स्टन के फ़र्नकोर्ट हाई स्कूल में एडमिशन लिया तो वहां पर क्रिकेट प्रोग्राम नहीं था.लेकिन मैं युवा था तो किसी न किसी तरह मुझे कुछ खेलना था. इसलिए मैंने ट्रैक एंड फील्ड में हाथ आजमाने का फैसला किया.


ट्रैक एंड फील्ड में आने के बाद रजिंदर ने पिछले साल ही जमैका ने राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती थी.लेकिन जमैका में रनर्स को काफी पैसा मिलता है और शॉट पुट एथलीट होने के नाते वह स्पोंसर्स एथलीट नहीं थे. इस तरह आर्थिक समस्या का हल निकालने के लिए उन्होंने अमेरिका के डॉमिनोस पिज्जा की शॉप में भी काम किया.

 

 

रजिंदर ने कहा,

 

जमैका के ट्रैक और फील्ड में स्प्रिंटर्स ही असली फोक्स होते हैं. अपने करियर की शुरुआत में मैं टीम में सिर्फ़ नंबर भरने वाला व्यक्ति था. इसका मतलब था कि मेरे पास अपने खेल को आगे बढ़ाने के लिए बहुत ज़्यादा पैसे नहीं थे. (पिज्जा की दुकान पर काम करना) बस एक ऐसा काम है जो मुझे करना ही पड़ता है. दुकान पर मौजूद हर कोई जानता है कि मैं वहां क्यों काम कर रहा हूं. इसलिए ये ठीक है.

 

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