मां के साथ रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करने वाली 20 साल की कस्तूरी राजमूर्ति ने रूस में तिरंगा लहरा दिया. राजमूर्ति ने WPPL वर्ल्ड कप में पावरलिफ्टिंग में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता. उन्होंने 48 किग्रा वेट कैटेगरी में 75 किलो डेडलिफ्ट और 55 किलो स्क्वाट किया. मुकाबले के लिए जब उनके नाम का ऐलान हुआ तो वो काफी नर्वस थीं. उन्होंने जब भार उठाया तो उन्हें अपनी मां की याद आई, जो तिरुवन्नामलाई स्टेशन पर कुली का काम करती हैं. कस्तूरी ने बचपन से ही अपनी 52 साल की मां को अपने सिर पर लोगों का भारी भरकम सामान उठाते देखा है.
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मां की मदद के लिए कई बार उन्होंने खुद अपने सिर पर सामान उठाकर स्टेशन के बाहर पहुंचाया. टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार रूस में तिरंगा लहराने के बाद बीते दिन राजमूर्ति अपने घर लौटीं. उन्होंने कहा- प्रतियोगिता में वजन उठाने के दौरान मुझे अपनी मां का ख्याल आया,जो रेलवे स्टेशन पर बैग उठा रही थीं. अचानक मेरा वजन हल्का हो गया. मेरी मां मेरी प्रेरणा हैं. वो लगातार कड़ी मेहनत करती रहती हैं. मैं और अधिक पदक जीतना चाहती हूं ताकि वो भारी सामान उठाना बंद कर दें.
जीत की नहीं थी उम्मीद
भारतीय खिलाड़ी का कहना है कि उन्हें जीत की उम्मीद नहीं थी. जब उनके नाम का ऐलान हुआ तो उन्हें काफी हल्का महसूस हुआ, क्योंकि उन्होंने उस दिन कुछ चिकन और पानी लिया था. तिरुवन्नामलाई के चेय्यार में पली बढ़ी राजमूर्ति अपने स्कूल की फुटबॉल टीम के लिए स्ट्राइकर के तौर पर खेल चुकी हैं. वो जिला स्तर पर कई खिताब जीते. उन्होंने चेन्नई के एथिराज कॉलेज में खेलना जारी रखा, मगर पुडुचेरी में एक नेशनल कैंप के दौरान उनका इस खेल से मोहभंग हो गया. उन्होंने कहा-
कस्तूरी राजमूर्ति को पावरलिफ्टिंग चुने हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है. उन्होंने पिछले साल ही इस खेल को चुना और उन्हें इस खेल में चमकने में ज्यादा समय नहीं लगा. उन्होंने एक साल में जिला टूर्नामेंट में 36 मेडल जीते.
आर्थिक तंगी के कारण राजमूर्ति ने कई बड़े मौके भी गंवाए. इस साल के शुरुआत में ही वो पैसों की कमी के कारण टूर्नामेंट के लिए यूरोप नहीं जा पाई थीं. उनके पास वीजा के लिए अप्लाई करने के पैसे नहीं थे. नोवोसिबिर्स्क टूर्नामेंट ने उन्हें दूसरा मौका दिया.भारतीय पावरलिफ्टिंग फेडरेशन के सपोर्ट उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया.
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